Thursday 6 September 2018

उम्र-ए-रफ़्ता


कुछ मंज़र ओझल ओझल से
कुछ सांसे बोझल बोझल सी
एक टीस उठा कर जाती हैं
कुछ यादें कोमल कोमल सी

एक आह सुलगती है दिल में
एक चाह सिसकती है दिल में
एक शाख़ जो मुझसे टूट गयी
वो शाख़ लचकती है दिल में

कई लोग मिले कई बिसर गए
कई वक़्त के हाथों बिखर गए
कई धुँधले धुंधले बाक़ी हैं
कई नज़र चुरा कर गुज़र गए

कभी तन्हाई के पहलु में
उन लोगों में खो जाता हूँ
वो लोग जो मुझमें बाक़ी हैं
क्या याद उन्हें मैं आता हुँ ?


Tuesday 14 August 2018

चराग़-ए-सेहर



ना जला हुआ ना बुझा हुआ मैं चराग़-ए-सेहर हुं थका हुआ जिसे पिछली रात जिला मिली जिसे ज़ुल्मतों की क़बा मिली जो वेहशतों से नहीं डरा !!
वो जुनैद पहरो-पहर लड़ा उसे बादे सबा ने बुझा दिया

✍️..


जिला=light,Life ज़ुल्मत=Darkness क़बा=cloth जुनैद=warrior बादे सबा= morning breez


Monday 6 August 2018

ग़ज़ल

ग़ज़ल 

नज़र में गुफ़्तुगू  रखना दिलों में उल्फतें रखना 
मगर फिर भी मोहब्बत में ज़रा सा फ़ासला रखना

यक़ीन रखना दिलों में आशिक़ाना क़ुर्बतें रखना  
मगर फिर भी क़राबत में ज़रा सा फ़ासला रखना

गले मिलना, निभाना यार के शाना-बा-शाना
मगर फिर भी रफ़ाक़त  में ज़रा सा फ़ासला रखना

सुनाना हालो-माज़ी का ज़माना वालिहाना
मगर फिर भी समाअत में ज़रा सा फ़ासला रखना

अमीन रहना  ज़माने में अमन के पासबाँ रहना 
मगर फिर भी शराफत  में ज़रा सा फ़ासला रखना

यक़ीनी है बज़्मे- यारां में तकल्लुफ का उठ जाना 
मगर फिर भी शरारत  में ज़रा सा फ़ासला रखना

मनाना मुआज़रत करना जो गर रूठा हो याराना 
मगर फिर भी समाजत में ज़रा सा फ़ासला रखना

सही है.. हाँ मोहब्बत में गिला शिकवा ज़रूरी है!
मगर फिर भी शिकायत में ज़रा सा फ़ासला रखना

..जुनैद 

Sunday 5 August 2018

तुम चली जाओ..











तुम चली जाओ..

अब तुम आई हो तो क्यों आई हो??
तुम्हारे वास्ते ये बाँहें अब मैं फैला सकता नहीं
तुम्हारे ज़ुल्फो-रुख़सार अब मैं सेहला सकता नहीं
तुम्हारे रंजो-ग़म को अब मैं बेहला सकता नहीं
वो नग़मे जो तुम्हारे लिए कहे थे मैंने
वही नग़मे अब मैं दोहरा सकता नहीं
अब नहीं मुमकिन, वो वक़्त गुज़र गया जानां
खुद मुझे खबर नहीं मैं किधर गया जानां
दिल भी मर गया कबका ! धड़कने फरार हैं
जिस्म सूखा पत्ता है ज़िन्दगी बेइख़्तियार है
जिस राह में तुम सब जीत ते  चले गए
उसी राह में सब हार गया हुँ मैं !!!!
तुम चली जाओ क अब मुझमें तुम्हारा कुछ भी नहीं
तुम्हे देने के लिए मायूसियों के सिवा कुछ  भी नहीं !!!


...जुनैद

सुनो ..


सुनो..

चलते चलते जब इस राह पे थक जाओगी 
दूर तक नज़रें दौड़ाओगी कुछ ना पाओगी
सुकूने क़ुल्ब की ख़ातिर भटकते हुए...
तब उसी मोड़ पर तुम मुझको खड़ा पाओगी
मेरी उल्फ़त मेरे जज़्बे मेरी वफाओं के निशां
अपनी राहों में कहीं बिखरे हुए पाओगी !!
निगाहें शर्म से झुक कर के उठ न पाएंगी
जब मेरी नज़रों से नज़रें मिलाना चाहोगी
ग़मे हयात की तल्ख़ियों से घबरा कर
मेरे सीने में खुद को छुपाना चाहोगी !!
तरसती आँखों में लरज़ते आंसुओं से 
मेरे दामन को भिगोना चाहोगी !! 
थाम कर वक़्त को लाचार हाथों में
फिरसे माज़ी की लकीरें पढ़ना चाहोगी !!
वही नग़मे जो तुम्हारे लिए कहे थे मैने
उन्ही नग़मों को फिरसे गुनगुनाना चाहोगी
फिर मोहब्बत की बाज़याबी के लिए 
सारा हासिल गंवाना चाहोगी।।

Monday 5 February 2018

wo ek shakhs tha..

ye kya hua do lamho’n me sab kuchh bikhar gaya!!
koi shakhs dil ke tukdon pe hokar guzar gaya!!
sab kuchh luta luta sa bikhra yahan wahan......
jaise kisi chaman se tufaan guzar gaya !!

ghuti ghuti si aahen bhi khaamosh ho gayin!!
hairatzadah nigaah bhi kuchh door tak gayi...
chaaha bahot ke rok lun,
aawaaz doon use..
khud badhke haath thaam loon,
jaane na doo'n use!!
lekin tamaam koshishen nakaam ho gayin


laga jase sab kuchh tham sa gaya ho!!
waqt jaise lamhon me jam sa gaya ho !!
zubaan per k jaise qufl lag gya ho!!
Jism jaise jaan se juda ho gaya ho!!


Ujaaley sath apne liye jaa rha tha…
Andhera nigaahon me gehra rha tha..
Sar-e-raah saaya sa lehra raha tha
wo ek shakhs tha....jo chala ja rha tha...!!

Friday 2 February 2018

shehar-e-biyabaa'n

koi khushi me na gham me shareek hai 
ye shehar ajeeb-o-ghareeb hai 
hain ajeeb yahan ke qaaidey 
kuch ajeeb hi han rivaayaten 
na kisi ko kisi ki khabar yahan 
na koi ksi k qareeb hai !! 

har chehra ek naqaab hai 
har hansi me chhupa raz hai 
yahan sarhadon ka zikr kia
har ghar me ek mahaaz hai! 


yahan shohraton ki shaan hai
yahan rupiya hi emaan hai
yehi qaaidah qanoon hai
yehi is shehar ki jaan hai!! 


insaaniyat-o-jazbaat kiya..? 

yahan rishton ki auqaat kiya..?
kiya wafa hai aur eisaar kiya..?
kiya dosty hai aur piyaar kiya..?
sab dafn hote ja rahe han..
..is shehar ki dhoool mei
ye nayi emaaraton ka shehar hai !!
ye shehar ajeeb-o-ghareeb hai !!